इस Articles में आप भारत में कृषि से संबंधित जानकारी (Agriculture related information in India) से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते है, जो प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते है। यह SSC, UPSC, PSC, Railway, PSU एवं अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। कृषि संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर दिए गए है, जो परीक्षाओं में पूछे जाते है।
भारत में कृषि (Agriculture)
भारत में कृषि (Agriculture) के लिए अंग्रेजी में एग्रीकल्चर शब्द प्रयुक्त होता है। एग्रीकल्चर शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के 2 शब्दों से हुई है। एग्री जिनका अर्थ मृदा और कल्चर का अर्थ कृषि है। इस प्रकार कृषि का अर्थ फसल उगाने के लिए मिट्टी की जुताई करना है।
कृषि ऋतु | प्रमुख फसलें | |
उत्तरी राज्य | दक्षिणी राज्य | |
खरीफ – (जून-सितंबर) | चावल, मक्का , ज्वार, अरहर (तुर) | चावल, मक्का ,ज्वार व मूंगफली। |
रबी (अक्टू.-मार्च) | गेहूं, चना, तोरई, सरसों, जौ | चावल, मक्का, रागी, मूंगफली |
जायद (अप्रैल-जून) | वनस्पति, सब्जियां, फल ,चारा फसलें | चावल, सब्जियां,चारा फसलें |
स्थानांतरित भारत में कृषि के विविध नाम
नाम | क्षेत्र |
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1. झूम | उत्तरी-पूर्वी भारत |
2. वेवार व डहियार | बुंदेलखंड सम्भाग (मध्य प्रदेश) |
3. दीपा | बस्तर (छत्तीसगढ़) व अंडमान |
4. जारा व एरका | दक्षिणी भारतीय राज्य |
5. पोडू | आन्ध्र प्रदेश |
6. बत्रा/बाल्टरे | दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान |
7. कोमान/वारिगा व पामाडावी हिमालय क्षेत्र | ओडिशा |
8. करूवा | झारखंड |
9. ओनम | केरल |
10. पामलू | मणिपुर |
भारत में कृषि: मुख्य फसलें
चावल (Rice)
चावल एक उष्ण कटिबंधीय फसल है एवं भारत की मानसूनी जलवायु में इसकी अच्छी कृषि की जाती है। यह देश की मुख्य खाद्यान्न फसल भी है।
गर्म एवं आर्द्र जलवायु की उपयुक्ता के कारण इसे खरीफ की फसल के रूप में उगाया जाता है। देश में खाद्यान्नों के अंतर्गत आने वाले कुल क्षेत्र में 47% भाग पर चावल की कृषि की जाती है।
चावल की 3 फसलें: 1. अमन (शीतकालीन), 2. औस (शरदकालीन), 3. बोरो (बोरो या ग्रीष्मकालीन) पैदा की जाती है।
चावल उत्पादक क्षेत्र: पूर्वी भारत का मैदानी प्रदेश जिसमें पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिमी बंगाल आते हैं, तटीय मैदानी क्षेत्र तथा पंजाब।
गोल्डन राइस (Golden Rice) |
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गोल्डन राइस का संवर्द्धन आनुवंशिक विज्ञान से किया जाता है। वैज्ञानिकों ने जीन परिवर्तन (आनुवांशिक परिवर्तन) करके विटामिन-A की कमी को दूर करने वाले चावल का विकास किया है, इस चावल का नाम ‘गोल्डन राइस’ रखा गया है। |
***इस चावल को तैयार करने में वैज्ञानिकों को 10 वर्ष तक अनुसंधान करना पड़ा। गोल्डन राइस को पैदा करने के लिए उसके पौधों पर जीनों का प्रत्यारोपण करना पड़ता है। जिससे पौधा बीटा-कैरोटीन युक्त पीले रंग का चावल देता है। ***बीटा कैरोटीन ऐसा तत्व है जो शरीर में विटामिन-A में परिवर्तित हो जाता है। भारत के कृषि वैज्ञानिक डॉ. गुरुदेव सिंह खुश को गोल्डन राइस किस्मों द्वारा। चावल के उत्पादन को 2 गुना बढ़ाने हेतु 1996 का विश्व खाद्य पुरस्कार प्रदान किया गया था। |
16 मार्च, 2015 को चेन्नई में अलाऊ गोल्डन राइस कैपेन वैश्विक स्तर पर प्रारंभ किया गया। इस अभियान का नेतृत्व पैट्रिक मूर (ग्रीन पीस के सह-संस्थापक) ने किया। इसका उद्देश्य 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में विटामिन-A की कमी को दूर करना है। |
गेहूं (Wheat)
चावल के बाद गेहूं देश का दूसरा सबसे महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न है। देश की कुल कृषि योग्य भूमि के लगभग 10% भाग पर गेहूं की कृषि की जाती है, किंतु चावल की अपेक्षा इसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन (लगभग 2500 किग्रा.) अधिक है। इसकी अधिकांश कृषि सिंचाई के द्वारा की जाती है।
हरित-क्रांति का सबसे अधिक प्रभाव गेहूं की कृषि पर ही पड़ा है। इसके प्रमुख उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा हरियाणा में हरित क्रांति के प्रयोगों से उच्च उत्पादकता तथा उत्पादन की मात्रा अधिक प्राप्त की गई है।
जौ (Barley)
जौ की गणना यद्यपि मोटे अनाजों में की जाती है। किंतु यह भी देश की एक महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। यह सामान्यतया शुष्क एवं बलुई मिट्टी में बोया । जाता है तथा इसकी शीत व नमी को अवशोषित करने की क्षमता भी अधिक होती है।
इसका सबसे प्रमुख उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश है जबकि बिहार राज्य के कृषि क्षेत्र के 5% भाग पर जौ की कृषि की जाती है।
ज्वार (Jowar)
ज्वार भी एक मोटा अनाज है जिसकी कृषि सामान्य वर्षा वाले क्षेत्रों पश्चिमी बंगाल में बिना सिंचाई के की जाती है। इसके लिए उपजाऊ जलोढ़ अथवा चिकनी मिट्टी काफी उपयुक्त होती है, किंतु लाल, पीली, हल्की, एवं भारी दोमट तथा बलुई मिट्टियों में भी इसकी कृषि की जाती है।
बाजरा (Bajra)
बाजरा की गणना भी मोटे अनाजों में की जाती है और यह वास्तव में, ज्वार भी शुष्क परिस्थितियों में पैदा किया जाता है। इसकी खेती के लिए 40 से 50 सेमी. तक की वर्षा एवं बलुई मिट्टी उपयुक्त होती है।
चूँकि वर्षा की हल्की एवं लगातार होने वाली फुहारें इसके लिए काफी उपयुक्त होती हैं, अतएव राजस्थान एवं गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश में बाजरे की अधिक कृषि की जाती है।
बाजरा ग्रामीण जनसंख्या का मुख्य खाद्यान्न है। इसकी अधिकांश मात्रा का उपयोग देश में ही किया जाता है।
मक्का (Maize)
देश के अपेक्षाकृत शुष्क भागों में मक्का का उपयोग प्रमुख खाद्यान्न के रूप में किया जाता है। इसके लिए लम्बा गर्मी का मौसम, खुला आकाश तथा अच्छी वर्षा आवश्यक होती है।
25° सेण्टीग्रेड से 30° सेण्टीग्रेड तापमान और 50 सेमी. तक की वर्षा वाले क्षेत्र तथा नाइट्रोजन युक्त गहरी दोमट मिट्टी में इसकी अच्छी कृषि की जाती है। देश में मक्के का सर्वाधिक उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है।
दालें (Pulses)
शाकाहारी भोजन पसन्द करने वाली जनसंख्या के लिए प्रोटीन प्राप्ति का सबसे प्रमुख साधन दालें हैं। देश में रबी एवं खरीब दोनों फसलों के अन्तर्गत दालों की कृषि की जाती हैं।
रबी की फसल के समय बोई जाने वाली प्रमुख दलहनी फसलें हैं। अरहर, चना, मटर, मसूर आदि जबकि मूंग, उड़द, लोबिया आदि की कृषि खरीफ के समय की जाती है।
भारत में कृषि की प्रमुख क्रांतियां
भारत में कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए 1960-61 में 7 जिलों में नई कृषि तकनीकों की शुरूआत की गई। इसके पश्चात् उच्च उत्पादकता किस्म प्रोग्राम (HYVP) की योजनाएं तैयार की गयीं, जिसे नयी बीज उर्वरक व सिंचाई प्रोग्राम(कार्यक्रम) कहा जाता है।
इसके अंतर्गत सर्वप्रथम गेहूं की नई किस्मों ‘लरमारोजो’, ‘सोनारा चौसठ’ ‘कल्याना’ तथा RB-18, तथा धान की नई किस्में TN-1, TR-8, TN-3 तथा ADT-17 तैयार की गयीं। इन अच्छे किस्मों के लिए नाइट्रोजन तथा फास्फोरस खादों के उत्पादन में वृद्धि की गयीं। साथ ही नहरों तथा कुओं के सिंचित क्षेत्र में भी वृद्धि की गयीं।
हरित क्रांति से संबंद्ध व्यक्ति
1. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (1966-1977)
2. खाद्य एवं कृषिमंत्री: चिदंबरम सुब्रमंडयम (1964-1967)
3. योजना मंत्री: प्रो. अशोक मेहता (1963-1967)
4. कृषि सचिवः बी.शिवरमन
5. कृषि वैज्ञानिकः प्रो. एम.एस.स्वामीनाथन
प्रमुख कृषि क्रांतियां | उत्पादन | क्रांति के जनक |
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1. हरित क्रांति | हरित क्रांति का सम्बन्ध कृषि क्षेत्र में उत्पादन तकनीक के सुधार एवं कृषि उत्पादकता में वृद्धि करने से है। | M.S. स्वामीनाथन (1966-67) |
2. श्वेत क्रांति | >दूध के क्षेत्र में क्रांति उत्पन्न करके उत्पादकता बढ़ाने के कार्यक्रमों को ही श्वेत क्रांति का नाम दिया गया। >श्वेत क्रांति की गति को और तेज करने के उद्देश्य से “ऑपरेशन फ्लड” नामक योजना आरम्भ की गयी। | डॉ. वर्गीस कुरियन (1970) |
3. पीली क्रांति | खाद्य तेलों और तिलहन फसलों के उत्पादन के क्षेत्र में | शशांक पांडे रजवार (1985-90) |
4. नीली क्रांति | मछली उत्पादन के क्षेत्र में | हीरालाल चौधरी और डॉक्टर अरुण कृष्णन |
5. गुलाबी क्रांति | मांस व्यापार के क्षेत्र में हुई प्रगति को गुलाबी क्रांति के रूप में में जाना जाता है। | दुर्गेश पटेल |
6. लाल क्रांति | टमाटर उत्पादन हेतु | विशाल तिवारी |
7. सुनहरी क्रांति | फल उत्पादन के क्षेत्र में | |
8. बादामी क्रांति | मसाला उत्पादन हेतु। | |
9. इंद्रधनुषीय क्रांति | कृषि क्षेत्र में 4% विकास दर हेतु। | |
10. भूरी क्रांति | गैर-परम्परागत ईंधन के उत्पादन के क्षेत्र में हुई क्रांति भूरी क्रांति के रूप में जानी जाती है। |
दलहनी फसल
दलहनी फसलों की दृष्टि से भारत की प्रमुख विशेषता यह है कि इनकी कृषि अनुपजाऊ मिट्टी एवं वर्षा की कमी वाले क्षेत्रों में ही की जाती है। चने की कृषि गंगा तथा सतलज नदियों की ऊपरी घाटी एवं उसके समीपवर्ती मध्य प्रदेश राज्य तक ही सीमित है।
इसका सबसे सघन क्षेत्र उत्तर प्रदेश के आगरा तथा मिर्जापुर जिलों के बीच | पाया जाता है जबकि पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात आदि प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।
नकदी फसलें
गन्ना (Sugarcane)
सम्पर्ण विश्व के गन्ना उत्पादक देशों में भारत का प्रथम स्थान है और यहाँ विश्व का लगभग 40% गन्ना पैदा किया जाता है। देश में विश्व के कुल गन्ना उत्पादक क्षेत्र का 37% भाग है।
गन्ने की फसल तैयार होने में लगभग एक वर्ष का समय लग जाता है और उपोष्ण कटिबन्धीय फसल होने के कारण इसके लिए 20° से 27° से. ग्रे. का औसत वार्षिक तापमान तथा 100 सेमी से 200 सेमी की औसत वार्षिक वर्षा उपयुक्त होती है।
गन्ने की फसल तैयार होते समय वर्षा का अभाव काफी लाभदायक होता है क्योंकि इससे शर्करा की मात्रा में वृद्धि हो जाती है।
भारत में गन्ने का अधिक उपयोग घरेलू उपभोग हेतु ही किया जाता है एवं इससे चीनी, गुड़, खांडसारी आदि मीठी वस्तुएं बनायी जाती हैं।
उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक तथा आन्ध्र प्रदेश देश के सर्वाधिक गन्ना उत्पादक राज्य हैं, जबकि हरियाणा, बिहार, कर्नाटक आदि राज्यों में भी गन्ने की अच्छी फसल की जाती है।
समुद्रतटीय जलवायु वाले क्षेत्रों में जलवायविक समानता के कारण दक्षिण भारत का गन्ना काफी मोटा एवं अधिक रस वाला होता है लेकिन मिट्टी की अनुपयुक्तता के कारण इसकी सर्वाधिक कृषि उत्तर भारत में ही की जाती है।
रबड़ (Rubber)
देश में रबड़ की कृषि का प्रारंभ 1900 में मारक्किस ऑफ सेलिसबरी के प्रयत्नों से हुआ। इसी वर्ष ब्राजील (दक्षिण अमेरिका) के पारा क्षेत्र से रबर का बीज लाकर केरल में पेरियार नदी के किनारे लगाये गये।
इसकी उत्तम कृषि के लिए 25° से 32° से. ग्रे. तक का उच्च तापमान, अत्यधिक वर्षा, लाल, लैटराइट, चिकनी एवं दोमट मिट्टी तथा अधिक मानव-श्रम की आवश्यकता होती है।
इसकी कृषि की उपयुक्त दशाओं की उपलब्धता के कारण यह दक्षिण भारत में ही पैदा किया जाता है। इसके प्रमुख उत्पादक राज्य- केरल, तमिलनाडु व कर्नाटक है।
पेय फसलें
चाय (Tea)
चाय (Tea) भारत में व्यापारिक स्तर पर चाय का उत्पादन अंग्रेजों द्वारा पहली बार 1834 – में किया गया, किंतु इससे पूर्व भी यह पौधा असम के पहाड़ी क्षेत्रों पर जंगली पौधे के रूप में उगता था।
इसकी कृषि के लिए अधिक वर्षा (150-250 सेमी. वार्षिक), 24° से 30° से. ग्रे. का उच्च तापमान, हरी एवं गन्धक युक्त मिट्टी तथा पत्तियों की चुनाई के लिए सस्ते श्रम की आवश्यकता होती है।
जल-प्रिय पौधा होने के बावजूद इसकी जड़ों में पानी नहीं लगना चाहिए। अत: इसकी खेती पहाड़ी ढालों पर की जाती है।
देश में चाय उत्पादन में असम का प्रथम स्थान है। यहाँ ब्रह्मपुत्र नदी की , घाटी में चाय की उन्नत कृषि की जाती है। इसके अतिरिक्त सूरमा नदी घाटी भी चाय की कृषि का एक प्रधान क्षेत्र है।
असम से देश के कुल चाय उत्पादन का 50% भाग प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग, कूचबिहार तथा जलपाईगुड़ी जिले, झारखण्ड के छोटानागपुर पठारी क्षेत्र, उत्तराखण्ड में गढ़वाल, कुमायूँ, नैनीताल तथा अल्मोड़ा जिलों के पहाड़ी ढालों पर तथा हिमाचल प्रदेश की कुल्लू घाटी में भी चाय पैदा की जाती है।
दक्षिण भारत में तमिलनाडु सर्वाधिक चाय उत्पादन करने वाला राज्य है। केरल, कर्नाटक तथा महाराष्ट्र के पर्वतीय ढालों पर भी चाय की कृषि की जाती है।
कॉफी/कहवा (Coffee)
विश्व के कुल कहवा उत्पादन का मात्र 2% उत्पादन भारत में किया जाता है, किंतु इसका स्वाद उत्तम होने के कारण इसकी मांग विदेशों में अधिक रहती है।
कहवा की उत्तम कृषि के लिए 15° से 18° से. ग्रे. औसत वार्षिक तापमान, 150 सेमी. से 250 सेमी. की औसत वार्षिक वर्षा तथा ढालू, पर्वतीय धरातल वाली एवं दोमट अथवा लावा निर्मित मिट्टी उपयुक्त होती है।
अरेबिका कहवा देश के कहवा के अन्तर्गत आने वाले आंध्रप्रदेश 1985 कुल क्षेत्रफल 60% भाग पर कर्नाटक, केरल व तमिलनाडु ओडिशा 1946 राज्यों में बोया जाता है। जबकि शेष भूमि पर रोबस्टा कॉफी हरियाणा 1969 की कृषि की जाती है।
जस्थान 1962 कहवा की खेती मात्र दक्षिण भारत के पर्वतीय ढालों तक ही 1963 सीमित है। इसका सर्वाधिक उत्पादन करने वाले राज्य हैं- कर्नाटक (68%), केरल (21%) तथा तमिलनाडु, महाराष्ट्र, ओडिशा, पं.बंगाल, कश्मीर, आन्ध्र प्रदेश, अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूह में भी कहवा पैदा किया जाता है।
रेशेदार फसलें
कपास (Cotton)
प्रायद्वीपीय पठारी भाग की लावा निर्मित काली मिट्टी के क्षेत्र में देश का सर्वाधिक कपास उत्पादन किया जाता है। महाराष्ट्र, गुजरात तथा पंजाब राज्य मिलकर देश के कुल उत्पादन के 55% से भी अधिक कपास का उत्पादन करते है।
महत्त्वपूर्ण उत्पादक राज्यः आन्ध्र प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, तमिलनाड, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक आदि है।
इसकी कृषि के लिए 20°-30° से. ग्रे. का उच्च तापमान, 200 दिन की पाला एवं ओला रहित अवधि, स्वच्छ आकाश, तेज तथा चमकदार धूप, 501 सेमी. से 100 सेमी. तक की वार्षिक वर्षा, भारी काली दोमट मिट्टी, लाल एवं काली मिट्टी तथा सस्ता श्रम आवश्यक होते हैं। भारत में विश्व के कुल कपास उत्पादन का लगभग 8% कपास पैदा किया जाता है।
जूट (Jute)
जूट एक प्रमुख रेशेदार फसल है। इसके रेशों से बोरे, रस्सियाँ, कालीन, कपड़े आदि बनाये जाते हैं। देश में 2 प्रकार का जूट पैदा किया जाता है। 1. चीनी जूट (Chinese Jute) 2. देशी जूट।
चीनी जूट जहाँ नदी घाटियों के उच्च भागों में बोया जाता है, वहीं देशी जूट की कृषि अपेक्षाकृत निम्न भागों में की जाती है। जूट की उत्तम कृषि के लिए 25° से 35° से. ग्रे. का उच्च तापमान, 100 सेमी. से 200 सेमी. या उससे अधिक औसत वार्षिक वर्षा, दोमट एवं नदियों की कछारी मिट्टी, स्वच्छ जल तथा सस्त श्रम आवश्यक होता है।
देश के 71% जूट का उत्पादन अकेले पश्चिम बंगाल में किया जाता है। यहां हगली नदी के डेल्टाई क्षेत्र सबसे प्रमुख जूट उत्पादक क्षेत्र है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही जूट के उत्पादन में पं. बंगाल राज्य का एकाधिकार बना हुआ
अन्य जूट उत्पादक राज्य बिहार, झारखण्ड, असम, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि है।
फसलों के रोग एवं लक्षण
फसलों | रोग | लक्षण |
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चावल | ब्लास्ट | पत्तियों पर भूरे रंग के नाव की तरह के नव निकोबार चकत्ते दिखाई पढ़ते हैं। |
गेहं | रतुआ | पत्तियों पर पीले, भूरे या काले रंग के धब्बे दिखाई पड़ते हैं। |
गन्ना | लाल विगलन | छोटे लाल रंग के धब्बे पत्ती की मध्य शिरा पर प्रकट होते हैं। गन्ने का भीतरी भाग लाल हो जाता है। |
चना | उखटा | पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती हैं। जड़े काली पड़कर गल जाती है। |
अरहर | तना बिगलन | मिट्टी की सतह के पास तने पर भूरे या गहरे भूरे धब्बे उभर जाते हैं, तना कट जाता है और पौधे मर जाते हैं। |
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